हरित क्रांति के लाभ तथा दोष या कमियां :-
वर्ष 1958 में 'इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रोनॉमी' की स्थापना की गई| जिस के प्रयासों से 1960 के दशक में पारस्परिक कृषि को आधुनिक तकनीक द्वारा प्रतिस्थापित किया गया| इसके अंतर्गत कृृषि उन्नत में बीजों, उर्वरकों तथा प्रौद्योगिकी का समावेश किया गया| इन प्रयासों व बदलावों के फलस्वरूपदेश में पहली बार 120 के स्थान पर 170 लाााख टन गेहूँ का उत्पादन हुआ| 50 टन की इस अप्रत्याशित वृद्धि को अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक नॉरमल बोरलॉग ने हरित क्रांति की संज्ञा दी|
भारत में हरित क्रांति का जनक एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है इन सफलताओं के पश्चात वर्ष 1960 में हरित क्रांति का प्रचार देश के विभिन्न भागों में होने लगा, जिसके परिणाम स्वरूप देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया|हरित क्रांति के दौरान ही वर्ष 1964-65 में सरकार ने गहन कृषि कार्यक्रम चलाया, जिसके अंतर्गत विशिष्ट फसलों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कियाा गया| वर्ष 1966-67 में अकाल पड़ा, जिसका सामना करने के लिए अधिक उपज बीज कार्यक्रम चलाया गयाा| जिसमें बहूफसली कार्यक्रम को भी शामिल कर लिया |
हरित क्रांति अपनाने के कारण :-
स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय भारतीय कृषि के लिए स्थितियां बहुत विषम थी| इसमें सुधार के लिए हरित क्रांति को अपनाये ं जाने की आवश्यकता थी| इस प्रकार हरित क्रांति अपनाएं जाने के निम्न कारण हैं|
1. औपनिवेशिक कारण :- ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत भारतीय कृषि का विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया| इससे कृषि की स्थिति दयनीय हो गई, जिसे सुधारने के लिए क्रांतिकारी प्रयास की आवश्यकता थी|
2. संरचनात्मक सुविधाओं का अभाव :- स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय भारतीय कृषि ; सिंचाई, सड़क, बिजली जैसी आवश्यक सुविधाओं से वंचित थी, जिसके लिए प्रयास करना अनिवार्य था|
3. परंपरागत कृषि पद्धति :- स्वतंत्रता के समय भारतीय कृषक लकड़ी के हल, निम्न उत्पादकता वाले बीज तथा मानसून आधारित सिंचाई पर निर्भर थे इससे कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों निम्न थी तथा जिस में सुधार की आवश्यकता थी|
4. मशीनीकरण का अभाव :- हार्वेस्टर, ट्रैक्टर, पंपिंग सेट जैसी आवश्यक मशीनों का नहीं के बराबर उपयोग होता था| इससे कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में बनी हुई थी, जिसे सुधारने की आवश्यकता थी|
5. संस्थागत सुविधाओं की अनुपलब्धता :- हरित क्रांति के अपनाए जाने से पूर्व बैंकिंग, बीमा तथा अन्य वित्तीय सुविधाओं तथा भूमि सुधार, चकबंदी आदि जैसी सुविधाएं पर्याप्त ढंग से उपलब्ध नहीं थी| इस प्रकार के अभाव का प्रभाव भारतीय कृषि पर प्रत्यक्ष रूप से पढ़ता था, जिस में सुधार की आवश्यकता थी|
हरित क्रांति के लाभ :-
1. अधिक उत्पादकता वाली प्रजातियों को बोया जाना|
2. उत्पादकता में वृद्धि के लिए भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना|
3. कृषि का यंत्रीकरण करना अर्थात बुवाई से लेकर कटाई तक यंत्रों का अधिकाधिक उपयोग करना|
4. कृषि अनुसंधान हेतु अनुसंधान संस्थाओं की स्थापना करना|
5. फसलों की सुरक्षा के लिए रासायनिक कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों क्रीमीनाशको का प्रयोग करना है का प्रयोग
6. भूमि सुधार कार्यक्रमों का क्रियान्वयन|
7. सिंचाई हेतु आदमी तकनीकों का प्रयोग|
8. गहन कृषि जिला कार्यक्रम संचालित किया गया|
9. लघु सिंचाई योजनाओं को प्रोत्साहन|
10. खेती केवल निर्वाह के लिए न होकर व्यवसायिक दृष्टि से की जाने लगी है|
11. फसलों में विविधता हेतु बहुफसली कार्यक्रम लागू करना|
12. कृषि साख का विस्तार किया जाना|
13. फसलों के संग्रहण के लिए संरक्षण गृहों की स्थापना|
हरित क्रांति के दोष या कमियां :-
यह सत्य है कि हरित क्रांति से देश को काफी लाभ हुआ, परंतु इसकी अपनी कमियां या दोस्त भी हैं| हरित क्रांति के दोस्त को निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता ह
1. असमानता में वृद्धि :- हरित क्रांति के क्षेत्रीय स्वरूप से सामाजिक- आर्थिक और असमानता में काफी वृद्धि हुई| एक और जहां पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश में उत्पादन में वृद्धि हुई और इससे कृषको की स्थिति बेहतर हुई वहीं अन्य क्षेत्रों में पिछड़ापन भी बना रहा|
2. क्षेत्रीय प्रभाव :- हरित क्रांति का प्रभाव वही पड़ा जहां पहले से सिंचाई एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध थी| जैसे-पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि लेकिन बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, आदि इसके प्रभाव से अछूते रहें| स्थानों पर हरित क्रांति देर से पहुंची|
3. धनी किसानों को लाभ :- हरित क्रांति के प्रारंभिक चरण में उन्हीं किसानों को फायदा हुआ, जो सिंचाई, उर्वरक, उन्नत बीज तथा कीटनाशक के खर्च को वहन करने में सक्षम थे| निर्धन किसान इस लाभ से वंचित रहें|
4. बेरोजगारी :- हरित क्रांति के अंतर्गत अपनाए जाने वाले मशीनीकरण ने बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न कर दी| यद्यपि इससे रोजगार के अवसर भी सृजित हुए|
5. पर्यावरण निम्नीकरण :- अत्याधिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग, अति सिंचाई तथा अवैज्ञानिक तरीके से की गई जुताई ने कई तरह की पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है| मृदा अम्लीयता, जल भराव, मृदा उर्वरता, में कमी तथा परिस्थितिकी पर दुष्प्रभाव हरित क्रांति का नकारात्मक देन है|
हरित क्रांति की सफलता संबंधी सुझाव :-
1. किसानों को उन्नत बीज तथा उर्वरक सस्ते दामों में मिलने चाहिए|
2. उपज का पर्याप्त मूल्य मिले तथा उसके भंडारण की व्यवस्था होनी चाहिए|
3. फसलों को आपदा से नुकसान की दिशा में किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए|
4. कृषि शिक्षा तथा उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रचार होना चाहिए|
5. शोध व अनुसंधान केंद्रों की वृद्धि की जानी चाहिए|
6. चकबंदी जैसे भूमि सुधार कार्यक्रम पुनः चलाए जाने चाहिए|
7. भूमि की गुणवत्ता की समय-समय पर जांच होनी चाहिए|
8. कृषि उपज के व्यापार की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा बिचौलियों का उन्मूलन होना चाहिए|
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Bahut khub dhanyawad
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