रहीम दास (अब्दुर्रहीम खानखाना) का जीवन-परिचय :-
रहीम दास का जन्म सन् 1556 ईस्वी में लाहौर में हुआ था| 'खानखाना' उपाधि इन को अकबर ने प्रदान की थी| इनके पिता बैरम खान हुमायूं के सेनापति थे| वह बचपन में अकबर के संरक्षक भी थे| अकबर ने बैरम खां से रुष्ट होकर उनको हज करने भेज दिया| मार्ग में उनके शत्रु मुबारक खां ने उनकी हत्या कर दी| इसके बाद अकबर ने 6 वर्ष के बालक रहीम तथा उसकी माता को अपने पास बुला लिया| रहीम का पालन-पोषण तथा शिक्षा-दीक्षा दीक्षा अकबर द्वारा हुई|
रहीम दास अत्यंत प्रतिभाशाली थे| इन्होंने अरबी, फारसी, तुर्की, हिंदी, संस्कृत आदिि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था| अकबर ने इनकी योग्यता देखकर इनको अपने दरबार नौ-रत्नों में में स्थान दिया| तथा अपना प्रधान सेनापति नियुक्तत किया| उसने जहांगीर की शिक्षा का दायित्व भी रहीम को सौंप दिया| रहीम उदार तथा दयालु थे| वे अत्यंत दानीी भी थे| वे भगवान श्री कृष्ण के भक्त थेे| हिंदू धर्म तथा शास्त्रों का उनको ज्ञान था|
रहीम दास मनुष्य के गुणों तथा योग्यता को परखने में वे अत्यंत कुशल थे| उनको जीवन में सुख-दु:ख का गहरा अनुभव था| रहीम में घमंड नहीं था| उनके निम्नलिखित दोहे से उनकी विनम्रता प्रकट होती है|
"देनाहार कोउ और है, देत रहत दिन रैन|
"लोग भरम हम परी करैं, या तैं नीचे नैन||"
रहीम की दानशीलता अत्यंत प्रसिद्ध है| कहा जाता है कि गंग कवि के छप्पय पर प्रसन्न होकर उन्होंने उनको 36 लाख रुपए दिए थे| अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर ने इनकी संपत्ति जप्त कर ली थी| इन तथा इनको चित्रकूट में बंदी बना लिया था| उस अवस्था में एक ब्राह्मण ने रहीम से अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए जब धन का याचना की| रहीम ने उसको निम्न दोहा लिखकर रीवा नरेश के पास भेजा-
" चित्रकूट में रमी रहे, रहिमन अवध नरेश|
जा पर विपदा परत है, सो आवैं इहि देश||"
रीवा नरेश ने इनको दोहा पढ़कर उस ब्राह्मण की सहायता की| रहीम तुलसी के मित्र थे| बंदी जीवन से मुक्त होने पर रहीम को घोर आर्थिक संकट जाना पड़ा| इस दशा में अपने दानी स्वभाव के अनुरूप या चीकू को कुछ न दे पानी से रहीम अत्यंत व्यथित होते थे| उनकी मनोदशा उनकी निम्नलिखित पंक्तियों से स्पष्ट होती है|
" अब रहीम दर-दर फिरै, मांग मधुकरी खाहिं|
यारों यारी छोड़ दो, वे रहीम अब नाहिं||"
रहीम का अंतिम समय घोर संकटों में व्यतीत हुआ| सन 1927 ईस्वी में हिंदी की इस महान कवि का देहांत हो गया|
" अब रहीम दर-दर फिरै, मांग मधुकरी खाहिं|
यारों यारी छोड़ दो, वे रहीम अब नाहिं||"
रहीम का अंतिम समय घोर संकटों में व्यतीत हुआ| सन 1927 ईस्वी में हिंदी की इस महान कवि का देहांत हो गया|
साहित्यिक सेवाएं :- रहीम ने ब्रजभाषा तथा अवधि में अपने काव्य रचना की है| उनकी नीति संबंधी दोहे में उनके गंभीर अनुभव की झलक मिलती है| हिंदी के अतिरिक्त आपने फारसी भाषा में भी लिखा है| रहीम ने मौलिक लेखन के साथ अनुवाद भी सफलतापूर्वक किया है| रहीम भक्तिकालीन हिंदी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं|
रहीम दास की रचनाएं :-
रहीम के काव्य ग्रंथ निम्नलिखित हैं|
1. रहीम सतसई :- अभी तक रहीम के लगभग तीन सौ दोहे प्राप्त हुए हैं| इस पुस्तक में रहीम के नीति संबंधी दोहे संग्रहीत हैं| इन दोहों पर रहीम के गहरे अनुभव की छाप है|
2. मदनाष्टक :- मदनाष्टक रहीम की श्रेष्ठ काव्य रचना है| यह संस्कृत मिश्रित ब्रजभाषा में लिखी गई है| इसमें गोपियों तथा श्री कृष्ण के प्रेम का वर्णन है|
3. श्रृंगार सोरठा :- यह रहीम की श्रृंगारीक रचना है| अभी तक इसके 6 सोरठे ही उपलब्ध है|
4. बरवै नायिका भेद वर्णन :- इस ग्रंथ की रचना कवि ने ब्रज तथा अवधि मिश्रित भाषा में की है इससे नायिकाओं के भेदों का वर्णन किया गया है| कवि ने इसके लिए बरवै छंद का प्रयोग किया है|
5. नगर शोभा :- इसमें विभिन्न जातियों की स्थितियों की सुंदरता का वर्णन है|
6. रासपंचाध्यायी :- यह ग्रंथ श्रीभागवत के आधार पर लिखा गया है यह अप्राप्त है|
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